कैसे मरा था गोरी( पृथ्वीराज रासो ग्रंथ के अनुसार )
बात तब की है जब मोहम्मद गोरी भारत में अथह सम्पति और स्वर्ण के लालच में आक्रमण किया था।
फिर हार गया और भरी सभा में जब उनको मृत्यु दंड दिया जा रहा था तब वे पृथ्वीराज चव्हाण जी के चरण पकड़ कर गिरगिराने लगे।
शरणार्थीयो को दया दान देना राजपूतो का धर्म है ऐसा जानकर वे क्षमादान किये।
पर प्रतिशोध स्पृहा और सम्पदा की लालच में गोरी फिर आक्रमण किया। फिर हार गया और उसको अपमानित करने के छोड़ गया ।
अपमानित हो कर उसका क्रोध और बड़ गया। वो फिर आक्रमण किया और ऐसे बार बार आक्रमण करता और पृथ्वीराज जैसे उसके साथ खिलवाड़ कर रहे हो ऐसे ही हारा देता। कुछ हार के बाद वो खुद भाग निकलता था ।
पृथ्वीराज जी का #युद्धनीति इतना सशक्त था की कोई भी उसका मुकाबला नही कर सकता था।
ऐसे में आप सब जानते है एक गद्दार ने उसकी #युद्धनीति का रहस्य मुहम्मद गोरी को बता दिया और फिर छल से हराकर पृथ्वीराज जी को बंदी बना लिया गया।
#चौहान तथा राज कवि #चंदबरदाई को बंदी बना लिया गया।युद्धबंधी के रूप में उन्हे गौरी के सामने ले जाया गया। गोरी ने कहा '''तुमने भी मुझे क्षमा किया था इसलिए हम तुम्हे मारेंगे वस तुम्हे भी मेरे पेर पकड़कर गिरगिराना होगा।'''
ये सुनकर पृथ्वीराज जी ने गोरी को घुर के देखा। गौरी ने उसे आँखें नीची करने के लिए कहा। पृथ्वीराज जी ने कहा की ''राजपूतो की आँखें केवल मृत्यु के समय नीची होती है।'' यह सुनते ही गौरी आगबबुला होते हुए उठा और उसने सेनिको को लोहे के गरम सरियों से उसकी आँखे फोड़ने का आदेश दिया।
👉 असल कहानी यहीं से शुरू होती है। पृथ्वीराज जी को रोज अपमानित करने के लिए रोज दरबार में लाया जाता था। जहाँ गौरी और उसके साथी पृथ्वीराज जी का मजाक उड़ाते थे। उन दिनों पृथ्वीराज जी अपना समय अपने जीवनी लेखक और कवि चंद् बरदाई के साथ बिताता था। चंद् ने ‘पृथ्वीराज रासो’ नाम से उनकी जीवनी कविता में पिरोई थी। उन दोनों को यह अवसर जल्द ही प्राप्त हो गया जब गौरी ने तीरंदाजी का एक खेल अपने यहाँ आयोजित करवाया। पृथ्वीराज जी ने भी खेल में शामिल होने की इच्छा जाहिर की परन्तु गौरी ने कहा की वह कैसे बिना आँखों के निशाना साध सकता है?
पृथ्वीराज जी ने कहा की यह उनका आदेश है। पर गौरी ने कहा एक राजा ही राजा को आदेश दे सकता है तब चाँद ने पृथ्वीराज के राजा होने का वृतांत कहा। गौरी सहमत हो गया और उसको दरबार में बुलाया गया। वहां गौरी ने पृथ्वीराज से उसके तीरंदाजी कौशल को प्रदर्शित करने के लिए कहा। चंदबरदाई जी ने पृथ्वीराज जी को कविता के माध्यम से प्रेरित किया। जिस तरफ गौरी वैठा था उसकी उंचाई के नाप बताने के लिए एक कविता सुनाये चव्हाण को। बार बार सुनाये और पृथ्वीराज जी इतने अच्छे निशाने साधते थे की केवल आवाज और नाप की भान लगाकर ही गोरी को मौत के घाट उतार दिया ।
👉 वो कविता इस प्रकार है-
“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है मत चुको चौहान।”
पृथ्वीराज चौहान ने तीर को गोरी के सीने में उतार दिया और वो वही तड़प तड़प कर मर गया ।
आज भी राजपूतो के वच्चो को ये कथा और ये कविता मंत्रो की तरह रटा दिया जाता है ताकी वे अपने राजा को कभी न भुले।
#कृष्णप्रिया
फिर हार गया और भरी सभा में जब उनको मृत्यु दंड दिया जा रहा था तब वे पृथ्वीराज चव्हाण जी के चरण पकड़ कर गिरगिराने लगे।
शरणार्थीयो को दया दान देना राजपूतो का धर्म है ऐसा जानकर वे क्षमादान किये।
पर प्रतिशोध स्पृहा और सम्पदा की लालच में गोरी फिर आक्रमण किया। फिर हार गया और उसको अपमानित करने के छोड़ गया ।
अपमानित हो कर उसका क्रोध और बड़ गया। वो फिर आक्रमण किया और ऐसे बार बार आक्रमण करता और पृथ्वीराज जैसे उसके साथ खिलवाड़ कर रहे हो ऐसे ही हारा देता। कुछ हार के बाद वो खुद भाग निकलता था ।
पृथ्वीराज जी का #युद्धनीति इतना सशक्त था की कोई भी उसका मुकाबला नही कर सकता था।
ऐसे में आप सब जानते है एक गद्दार ने उसकी #युद्धनीति का रहस्य मुहम्मद गोरी को बता दिया और फिर छल से हराकर पृथ्वीराज जी को बंदी बना लिया गया।
#चौहान तथा राज कवि #चंदबरदाई को बंदी बना लिया गया।युद्धबंधी के रूप में उन्हे गौरी के सामने ले जाया गया। गोरी ने कहा '''तुमने भी मुझे क्षमा किया था इसलिए हम तुम्हे मारेंगे वस तुम्हे भी मेरे पेर पकड़कर गिरगिराना होगा।'''
ये सुनकर पृथ्वीराज जी ने गोरी को घुर के देखा। गौरी ने उसे आँखें नीची करने के लिए कहा। पृथ्वीराज जी ने कहा की ''राजपूतो की आँखें केवल मृत्यु के समय नीची होती है।'' यह सुनते ही गौरी आगबबुला होते हुए उठा और उसने सेनिको को लोहे के गरम सरियों से उसकी आँखे फोड़ने का आदेश दिया।
👉 असल कहानी यहीं से शुरू होती है। पृथ्वीराज जी को रोज अपमानित करने के लिए रोज दरबार में लाया जाता था। जहाँ गौरी और उसके साथी पृथ्वीराज जी का मजाक उड़ाते थे। उन दिनों पृथ्वीराज जी अपना समय अपने जीवनी लेखक और कवि चंद् बरदाई के साथ बिताता था। चंद् ने ‘पृथ्वीराज रासो’ नाम से उनकी जीवनी कविता में पिरोई थी। उन दोनों को यह अवसर जल्द ही प्राप्त हो गया जब गौरी ने तीरंदाजी का एक खेल अपने यहाँ आयोजित करवाया। पृथ्वीराज जी ने भी खेल में शामिल होने की इच्छा जाहिर की परन्तु गौरी ने कहा की वह कैसे बिना आँखों के निशाना साध सकता है?
पृथ्वीराज जी ने कहा की यह उनका आदेश है। पर गौरी ने कहा एक राजा ही राजा को आदेश दे सकता है तब चाँद ने पृथ्वीराज के राजा होने का वृतांत कहा। गौरी सहमत हो गया और उसको दरबार में बुलाया गया। वहां गौरी ने पृथ्वीराज से उसके तीरंदाजी कौशल को प्रदर्शित करने के लिए कहा। चंदबरदाई जी ने पृथ्वीराज जी को कविता के माध्यम से प्रेरित किया। जिस तरफ गौरी वैठा था उसकी उंचाई के नाप बताने के लिए एक कविता सुनाये चव्हाण को। बार बार सुनाये और पृथ्वीराज जी इतने अच्छे निशाने साधते थे की केवल आवाज और नाप की भान लगाकर ही गोरी को मौत के घाट उतार दिया ।
👉 वो कविता इस प्रकार है-
“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है मत चुको चौहान।”
पृथ्वीराज चौहान ने तीर को गोरी के सीने में उतार दिया और वो वही तड़प तड़प कर मर गया ।
आज भी राजपूतो के वच्चो को ये कथा और ये कविता मंत्रो की तरह रटा दिया जाता है ताकी वे अपने राजा को कभी न भुले।
#कृष्णप्रिया
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