एक अनोखी सर्जरी की ईतिहास जो सर्वप्रथम भारत से सिखा था दुनिया
जब पश्चिम ने भारत से सिखा सर्जरी
हम भारतीयों ने विश्व की सबसे बेहतरीन चिकित्सा व्यवस्था "आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यवस्था" विश्व को दी और भारतीयों ने ही सर्जरी की विद्या विश्व को सिखाई.
आज विश्व भर में ये कहा जाता है कि दुनिया को सर्ज़री की विद्या इंग्लैंड ने सिखाई. लेकिन इंग्लैंड की "रोयल सोसायटी ऑफ सर्जन" अपने इतिहास में ये लिखती है कि हमनें सर्जेरी भारत से ही सीखी है.
लन्दन में "फैलो ऑफ द रॉयल सोसाइटी" की स्थापना करने वाला अंग्रेज हॉलकॉट 1795 में भारत में मद्रास में आकर सर्जरी सीख कर गया.
उसकी डायरी के पन्ने इस बात के गवाह हैं. वो बार-बार ये कहता रहा कि मैंने ये विद्या भारत से सीखी है और फिर मैने इसे पूरे यूरोप को सिखाया है. लेकिन अंग्रेजों ने उसकी शुरू की बात को तो दबा दिया और बाद के वाक्य ' मैने सर्जरी विद्या को पूरे यूरोप को सिखाया है ' का खूब प्रचार किया.
सर्जरी हमारी विद्या है और इसका सबसे पुख्ता प्रमाण हमारे पास मौजूद है "सुश्रुत संहिता" नाम के ग्रन्थ के रूप में. सुश्रुत संहिता हज़ारों वर्ष पुराना ग्रन्थ है और सर्जरी पर ही आधारित है. इसे अगर आप पढेंगे तो जान जायेंगे कि सर्जरी यानि कि शल्य चिकित्सा के लिए जिन यंत्रों और उपकरणों कि ज़रूरत होती है ऐसे 125 यंत्र और उपकरण महर्षि सुश्रुत के समय में आविष्कृत हो चुके थे. आज की आधुनिक सर्जरी में बहुत सारे उपकरण वही हैं जो महर्षि सुश्रुत जी ने बताये थे.
आज आमेरिका के कोलम्बिया युनिवर्सिटी ने हमारे परम पुजनीय महर्षि सुश्रुत जी को ''फादर अब सर्जरी''(शल्य चिकित्सा के जनक) के उपाधि दिये।
Link:
https://www.google.com/amp/s/www.newsnation.in/amp/science/news/plastic-surgery-originated-in-india-during-6th-century-bce-columbia-university-cites-sushruta-samhita-211231.html
प्लास्टिक सर्जरी भारत की देन
18वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में हैदर अली नाम का एक राजा हुआ करता था, टीपू सुल्तान इन्हीं के पुत्र थे.
1780 से 1784 के बीच में अंग्रेजों ने हैदर अली पर कई हमले किये और हर बार हैदर अली से हारकर गए. इनमें से एक हमले का ज़िक्र एक अंग्रेज़ की डायरी में दर्ज है,
ए हिस्ट्री ऑफ प्लास्टिक सर्जरी नामक पुस्तक में वर्ष 1793 में पूना, भारत में व्यक्ति के नाक की प्लास्टिक सर्जरी किए जाने का विवरण दिया गया है। वर्णन इस प्रकार है –
इसके (नाक की प्लास्टिक सर्जरी) पुनप्र्रारंभ होने का पहला संकेत भारत में मिला, हालांकि जिसकी यूरोप में तुरंत प्रतिक्रिया नहीं हुई।
इस बारे में 1793 में अंग्रेजी समाचारपत्र मद्रास गैजेटियर में एक लेख प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था ए सिंगुलर ऑपरेशन यानी एक अनुपम शल्य चिकित्सा। ईस्ट इंडिया कंपनी के दो चिकित्सकों द्वारा लिखे गए इस लेख में एक मराठा वैद्य परिवार के व्यक्ति द्वारा नाक की प्लास्टिक सर्जरी किए जाने का वर्णन किया गया था, जिसे उन्होंने प्रत्यक्ष देखा था। उसके अगले वर्ष 1794 में द जेंटलमैन नामक अखबार जो कि एक अधिक संभ्रांत किंतु वैज्ञानिक पत्र नहीं था, में किसी बीएल नामक व्यक्ति का एक पत्रि प्रकाशित हुआ। यूरोप में नाक की प्लास्टिक सर्जरी किए जाने के विकास में इस पत्र का जबरदस्त प्रभाव रहा।
इस पत्र को उस पुस्तक में ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है। द जैंटलमैन के अंक के संदर्भित पृष्ठ की प्रतिलिपि भी प्रकाशित की गई है। उस पत्र के अनुसार घटना इस प्रकार है।
कावसजी(Kavas ji) नामक एक किसान अंग्रेजों की सेना में बैलगाड़ी चलाता था। वर्ष 1780 के टीपू सुल्तान के साथ अंग्रेजों के युद्ध में वह टीपू सुल्तान द्वारा बंदी बना लिया गया और टीपू ने उसकी नाक और एक हाथ काट दिए। लगभग बारह महीनों तक वह अपनी कटी नाक लेकर घूमता रहा, जबतक कि पूना में एक वैद्य ने उसकी नई नाक नहीं बना दी। इस प्रकार की शल्य चिकित्सा यहां अत्यंत प्राचीन काल से ही की जाती रही है। बाम्बे प्रेसिडेंसी के दो डाक्टर #थॉमस_क्रूसो और जेम्स ट्रिंडले ने स्वयं देखा था। उन्होंने भारतीय वैद्य द्वारानाक बनाए की इस सर्जरी को सिखने के लिए उनके पास गये एवं बाद में युरोप में इसकी चर्चा की।
इसके बाद अंग्रेजों का एक दल उस वैध से मिलने बेलगाम जाता है. बेलगाम में वो वैध उनको मिलता है और वो उससे अंग जोड़ने की विद्या के बारे में पूंछते हैं कि, तुमने ये विद्या कैसे सीखी? तो वैध ने कहा कि आपको तो यहाँ हर गांव में मुझ जैसा वैध मिल जाएगा.
भारत में अंग्रेजों ने प्लास्टिक सर्जरी सीखी
जिन-जिन अंग्रेजों ने भारत में प्लास्टिक सर्जरी सीखी उनकी डायरियां आज भी इस बात का प्रमाण हैं. एक ऐसा ही प्रसिद्ध अंग्रेज़ था थॉमस क्रूसो वो 1792 में अपनी डायरी में लिखता है कि, " गुरुकुल में मुझे जिस विशेष आदमी ने प्लास्टिक सर्जरी सिखाई वो जाति का नाई था. चर्मकार जाति के बहुत से सर्जन थे. शायद चमड़ी सिलना उन्हें ज्यादा अच्छा आता है." यानि कि 1792 तक हर कोई बिना भेद-भाव के गुरुकुलों में शिक्षा पा रहा था और दे रहा था.ये गुरुकुल पुणे में था जहां इस अंग्रेज़ ने प्लास्टिक सर्जरी सीखी. आगे वो लिखता है कि, " मुझे अच्छे से सिखाने के बाद उस शिक्षक ने मुझसे ऑपरेशन भी करवाया. मैंने अपने शिक्षक के साथ मिलकर एक घायल मराठा सैनिक का ऑपरेशन किया. उसके हाथ युद्ध में कट गए थे. हमारा ऑपरेशन सफल रहा. उसके हाथ जुड़ गए." थॉमस क्रूसो सीखकर इंग्लैंड चला गया. वो लिखता है," इतना अदभुत ज्ञान मैंने किसी से सीखा और इसे सिखाने के लिए किसी ने मुझसे एक पैसा तक नहीं लिया. ये बहुत ही आश्चर्य की बात है." उसका ये कथन इस बात की फिर से पुष्टि करता है कि भारत में शिक्षा हमेशा #मुफ्त रही है।
👉(पहले चिकित्सालय में निशुल्क चिकित्सा होता था, चिकित्सा की खर्च राजकोष से भरपाई की जाती थी। सम्राट अशोक के शिलालेख में निशुल्क चिकित्सालय,धर्मशाला,जलाशय निर्माण का उल्लेख । चालुक्य राजा पुलकेशी भी प्रजायो निशुल्क चिकित्सालय बनाये थे। अर्थात विश्व के पहली विश्वविद्यालय के जैसे पहला चिकित्सालय भी भारत में ही था)👈
खैर क्रूसो का गुरुकुल से सर्जरी की शिक्षा लेना यहाँ पढ़ना ये साबित करता है कि भारत में बिना भेद-भाव के सभी को शिक्षा मिला करती थी.
इंग्लैंड जाकर थॉमस क्रूसो ने एक स्कूल खोला और वहाँ सर्जरी सिखाना शुरू कर दिया.
दुर्भाग्य है कि प्लास्टिक सर्जरी के विश्व ग्रंथों में क्रूसो और उसके स्कूल का तो वर्णन है।
लेकिन उस गुरुकुल का, उस शिक्षक का, भारत का वर्णन नहीं है.
नीचे दी गई चित्र युरोप के जेंटलमैन मैग्जीन( 1794 )का है जिसमे कावसजी नाम के किसान की चित्र देकर भारत से शल्य चिकित्स सिखने बाली बात की पुष्टि हुई है।
https://www.jnorman.com/pages/books/35113/b-l/article-on-indian-rhinoplasty-in-gentlemans-magazine
#कृष्णप्रिया
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