क्यो बंद है ताजमहल के ये दरबाजे???
आखिर क्यों बंद है -ताजमहल के ये दरवाजे?
विश्व के किसी भी मुस्लिम ढ़ाचे मे मीनार भूमि पर नहीं बनायी जाती है। वह दीवारों के ऊपर ही बनायी जाती है जबकि ताजमहल के चारों कोनों पर बने मीनार मन्दिर के दीप स्तम्भ है । इस्लामी रचनावों मे किसी भी प्रकार की प्रकृतिक वस्तुवों का चित्रण वर्जित है वे वेल –बूटे तथा अल्पना मानते है । जबकि ताजमहल कमल पुष्पों ,कलश, नारियल आदि शुभ प्रतीकों से अलंकृत है । ताजमहल की अष्ठफलकीय संरचना उसके हिन्दू स्थापत्य को सिद्ध कर रही है ।
दुनिया भर के मजारों मे मुर्दे का सिर पश्चिम और पैर पूर्व मे होता है जबकि ताजमहल मे स्थित मुमताज़ और शाहजहा की मजार का सिर उत्तर और पैर दक्षिण मे है। इसमे मजार की लंबाई नौ फुट से अधिक है जो समग्र विश्व के मानवीय लंबाइयो से भी ज्यादे है आखिर ऐसा क्यो ? पाठकगण स्वयं ही कल्पना कर सकते है कि जिस मुमताज़ कि मजार के रूप मे ताजमहल का निर्माण बताया जाता है वह आगरा से लगभग 1500 किलोमीटर दूर “बूरानपुर”(मध्य प्रदेश मे है ) मे अपने चौदहवे प्रसव के दौरान चिकित्सकीय अभाव मे मरी थी और वही पर उसे दफनाया गया था । आज भी बूरानपुर मे मुमताज़ कि मजार दर्शनीय है जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देख रेख मे है । इस्लाम मे एक बार शव को दफनाने के बाद उखारना वर्जित है ।
इतिहासकारो के अनुसार मुमताज़ के मरने के एक साल बाद उसके मजार को उखार कर आगरा लाया गया और ताजमहल के पास स्थित रामबाग (जिसे अब आरामबाग कहा जाता है ) मे इग्यारह महीने रखा गया फिर उसे पुनः ताजमहल मे दफनाया गया । अब विचारणीय यह है मुमताज़ की दोनों कब्रों का अस्तित्व क्यों है ? रामबाग मे रखने के स्थान को मजार क्यों नहीं माना गया ? ताजमहल मे जो द्रष्टव्य मजार है उसके नीचे भी दो मजार है जिसपर बूंद –बूंद जल टपकता रहता है जिसे अब “वक्फ बोर्ड ” ने बंद करवा दिया । इस प्रकार 6 मजारो का अस्तित्व को क्या माना जाए ?यह सभी प्रश्न गंभीरता पूर्ण विचारणीय है । पराधीन भारत के सारे मापदंडो को विदेशी बताया गया और हमारी गुलाम मनसिक्ता के इतिहासकर भी चाटुकारिता मे गुलामी के गीत गाते रहे । इतिहासकार पुरुषोत्तम ओक ने अपनी पुस्तक में लिखा हैं कि शाहजहां ने दरअसल, वहां अपनी लूट की दौलत छुपा रखी थी इसलिए उसे कब्र के रूप में प्रचारित किया गया। यदि शाहजहां चकाचौंध कर देने वाले ताजमहल का वास्तव में निर्माता होता तो इतिहास में ताजमहल में मुमताज को किस दिन बादशाही ठाठ के साथ दफनाया गया, उसका अवश्य उल्लेख होता।
ओक अनुसार जयपुर राजा से हड़प किए हुए पुराने महल में दफनाए जाने के कारण उस दिन का कोई महत्व नहीं? शहंशाह के लिए मुमताज के कोई मायने नहीं थे। क्योंकि जिस जनानखाने में हजारों सुंदर स्त्रियां हों उसमें भला प्रत्येक स्त्री की मृत्यु का हिसाब कैसे रखा जाए। जिस शाहजहां ने जीवित मुमताज के लिए एक भी निवास नहीं बनवाया वह उसके मरने के बाद भव्य महल बनवाएगा?
आगरा से 600 किलोमीटर दूर बुरहानपुर में मुमताज की कब्र है, जो आज भी ज्यों की त्यों है। बाद में उसके नाम से आगरे के ताजमहल में एक और कब्र बनी और वे नकली है। बुरहानपुर से मुमताज का शव आगरे लाने का ढोंग क्यों किया गया? माना जाता है कि मुमताज को दफनाने के बहाने शहजहां ने राजा जयसिंह पर दबाव डालकर उनके महल (ताजमहल) पर कब्जा किया और वहां की संपत्ति हड़पकर उनके द्वारा लूटा गया खजाना छुपाकर सबसे नीचले माला पर रखा था जो आज भी रखा है।
मुमताज का इंतकाल 1631 को बुरहानपुर के बुलारा महल में हुआ था। वहीं उन्हें दफना दिया गया था। लेकिन माना जाता है कि उसके 6 महीने बाद राजकुमार शाह शूजा की निगरानी में उनके शरीर को आगरा लाया गया। आगरा के दक्षिण में उन्हें अस्थाई तौर फिर से दफन किया गया और आखिर में उन्हें अपने मुकाम यानी ताजमहल में दफन कर दिया गया।
पुरुषोत्तम अनुसार क्योंकि शाहजहां ने मुमताज के लिए दफन स्थान बनवाया और वह भी इतना सुंदर तो इतिहासकार मानने लगे कि निश्चित ही फिर उनका मुमताज के प्रति प्रेम होना ही चाहिए। तब तथाकथित इतिहासकारों ने इसे प्रेम का प्रतीक लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने उनकी गाथा को लैला-मजनू, रोमियो-जूलियट जैसा लिखा जिसके चलते फिल्में भी बनीं और दुनियाभर में ताजमहल प्रेम का प्रतीक बन गया।
मुमताज से विवाह होने से पूर्व शाहजहां के कई अन्य विवाह हुए थे अत: मुमताज की मृत्यु पर उसकी कब्र के रूप में एक अनोखा खर्चीला ताजमहल बनवाने का कोई कारण नजर नहीं आता। मुमताज किसी सुल्तान या बादशाह की बेटी नहीं थी। उसे किसी विशेष प्रकार के भव्य महल में दफनाने का कोई कारण नजर नहीं अता। उसका कोई खास योगदान भी नहीं था। उसका नाम चर्चा में इसलिए आया क्योंकि युद्ध के रास्ते के दौरान उसने एक बेटी को जन्म दिया था।
इतिहासकार पुरुषोत्तम ओक ने अपनी पुस्तक में लिखा हैं कि शाहजहां ने दरअसल, वहां अपनी लूट की दौलत छुपा रखी थी इसलिए उसे कब्र के रूप में प्रचारित किया गया। यदि शाहजहां चकाचौंध कर देने वाले ताजमहल का वास्तव में निर्माता होता तो इतिहास में ताजमहल में मुमताज को किस दिन बादशाही ठाठ के साथ दफनाया गया, उसका अवश्य उल्लेख होता।
मुमताज से विवाह होने से पूर्व एवं उपरांत शाहजहां के कई अन्य विवाह हुए थे। उसके पश्चात मुमताज की पुत्री जहानरा के साथ उनका अवैध संबंध था । जिसको ईस्लाम के अनुसार वो जायज मानता था। तो ये कैसा प्रेम है? ये भी एक प्रश्न यहा पर है।
मुमताज की मृत्यु पर उसकी कब्र के रूप में एक अनोखा खर्चीला ताजमहल बनवाने का कोई कारण नजर नहीं आता। मुमताज किसी सुल्तान या बादशाह की बेटी नहीं थी। उसे किसी विशेष प्रकार के भव्य महल में दफनाने का कोई कारण नजर नहीं अता। उसका कोई खास योगदान भी नहीं था। उसका नाम चर्चा में इसलिए आया क्योंकि युद्ध के रास्ते के दौरान उसने एक बेटी को जन्म दिया था और वह मर गई थी।
शाहजहां के बादशाह बनने के बाद ढाई-तीन वर्ष में ही मुमताज की मृत्यु हो गई थी। इतिहास में मुमताज से शाहजहां के प्रेम का उल्लेख जरा भी नहीं मिलता है। यह तो अंग्रेज शासनकाल के इतिहासकारों की मनगढ़ंत कल्पना है जिसे भारतीय इतिहासकारों ने विस्तार दिया। शाहजहां युद्ध कार्य में ही व्यस्त रहता था। वह अपने सारे विरोधियों की की हत्या करने के बाद गद्दी पर बैठा था।
इसलिए ये प्रेम कथा पर अनेक संदेह उपस्थित होता है।
ब्रिटिश ज्ञानकोष के अनुसार ताजमहल परिसर में अतिथिगृह, पहरेदारों के लिए कक्ष, अश्वशाला इत्यादि भी हैं। मृतक के लिए इन सबकी क्या आवश्यकता?एक मकबरे में स्वाभाविक रुप से ये सब नही दिखती ।
उसके बाद कार्बन डेटिंग कराई गई तो पता चला ताजमहल शहजंहा के जन्म से भी बहुतो पुराना है।
हिन्दू मान्यता के अनुसार वंहा आज भी महल के कुल देवता महादेव जी का मंदिर है जिसे बंद कर दिया गया।
और महल पर संगमरमर चड़वाकर इसे नया रुप दिया गया। पर आस पास में पुराने महल के हिस्से आज भी है जिसे संगमरमर से नही ढका गया था।
#कृष्णप्रिया
विश्व के किसी भी मुस्लिम ढ़ाचे मे मीनार भूमि पर नहीं बनायी जाती है। वह दीवारों के ऊपर ही बनायी जाती है जबकि ताजमहल के चारों कोनों पर बने मीनार मन्दिर के दीप स्तम्भ है । इस्लामी रचनावों मे किसी भी प्रकार की प्रकृतिक वस्तुवों का चित्रण वर्जित है वे वेल –बूटे तथा अल्पना मानते है । जबकि ताजमहल कमल पुष्पों ,कलश, नारियल आदि शुभ प्रतीकों से अलंकृत है । ताजमहल की अष्ठफलकीय संरचना उसके हिन्दू स्थापत्य को सिद्ध कर रही है ।
दुनिया भर के मजारों मे मुर्दे का सिर पश्चिम और पैर पूर्व मे होता है जबकि ताजमहल मे स्थित मुमताज़ और शाहजहा की मजार का सिर उत्तर और पैर दक्षिण मे है। इसमे मजार की लंबाई नौ फुट से अधिक है जो समग्र विश्व के मानवीय लंबाइयो से भी ज्यादे है आखिर ऐसा क्यो ? पाठकगण स्वयं ही कल्पना कर सकते है कि जिस मुमताज़ कि मजार के रूप मे ताजमहल का निर्माण बताया जाता है वह आगरा से लगभग 1500 किलोमीटर दूर “बूरानपुर”(मध्य प्रदेश मे है ) मे अपने चौदहवे प्रसव के दौरान चिकित्सकीय अभाव मे मरी थी और वही पर उसे दफनाया गया था । आज भी बूरानपुर मे मुमताज़ कि मजार दर्शनीय है जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देख रेख मे है । इस्लाम मे एक बार शव को दफनाने के बाद उखारना वर्जित है ।
इतिहासकारो के अनुसार मुमताज़ के मरने के एक साल बाद उसके मजार को उखार कर आगरा लाया गया और ताजमहल के पास स्थित रामबाग (जिसे अब आरामबाग कहा जाता है ) मे इग्यारह महीने रखा गया फिर उसे पुनः ताजमहल मे दफनाया गया । अब विचारणीय यह है मुमताज़ की दोनों कब्रों का अस्तित्व क्यों है ? रामबाग मे रखने के स्थान को मजार क्यों नहीं माना गया ? ताजमहल मे जो द्रष्टव्य मजार है उसके नीचे भी दो मजार है जिसपर बूंद –बूंद जल टपकता रहता है जिसे अब “वक्फ बोर्ड ” ने बंद करवा दिया । इस प्रकार 6 मजारो का अस्तित्व को क्या माना जाए ?यह सभी प्रश्न गंभीरता पूर्ण विचारणीय है । पराधीन भारत के सारे मापदंडो को विदेशी बताया गया और हमारी गुलाम मनसिक्ता के इतिहासकर भी चाटुकारिता मे गुलामी के गीत गाते रहे । इतिहासकार पुरुषोत्तम ओक ने अपनी पुस्तक में लिखा हैं कि शाहजहां ने दरअसल, वहां अपनी लूट की दौलत छुपा रखी थी इसलिए उसे कब्र के रूप में प्रचारित किया गया। यदि शाहजहां चकाचौंध कर देने वाले ताजमहल का वास्तव में निर्माता होता तो इतिहास में ताजमहल में मुमताज को किस दिन बादशाही ठाठ के साथ दफनाया गया, उसका अवश्य उल्लेख होता।
ओक अनुसार जयपुर राजा से हड़प किए हुए पुराने महल में दफनाए जाने के कारण उस दिन का कोई महत्व नहीं? शहंशाह के लिए मुमताज के कोई मायने नहीं थे। क्योंकि जिस जनानखाने में हजारों सुंदर स्त्रियां हों उसमें भला प्रत्येक स्त्री की मृत्यु का हिसाब कैसे रखा जाए। जिस शाहजहां ने जीवित मुमताज के लिए एक भी निवास नहीं बनवाया वह उसके मरने के बाद भव्य महल बनवाएगा?
आगरा से 600 किलोमीटर दूर बुरहानपुर में मुमताज की कब्र है, जो आज भी ज्यों की त्यों है। बाद में उसके नाम से आगरे के ताजमहल में एक और कब्र बनी और वे नकली है। बुरहानपुर से मुमताज का शव आगरे लाने का ढोंग क्यों किया गया? माना जाता है कि मुमताज को दफनाने के बहाने शहजहां ने राजा जयसिंह पर दबाव डालकर उनके महल (ताजमहल) पर कब्जा किया और वहां की संपत्ति हड़पकर उनके द्वारा लूटा गया खजाना छुपाकर सबसे नीचले माला पर रखा था जो आज भी रखा है।
मुमताज का इंतकाल 1631 को बुरहानपुर के बुलारा महल में हुआ था। वहीं उन्हें दफना दिया गया था। लेकिन माना जाता है कि उसके 6 महीने बाद राजकुमार शाह शूजा की निगरानी में उनके शरीर को आगरा लाया गया। आगरा के दक्षिण में उन्हें अस्थाई तौर फिर से दफन किया गया और आखिर में उन्हें अपने मुकाम यानी ताजमहल में दफन कर दिया गया।
पुरुषोत्तम अनुसार क्योंकि शाहजहां ने मुमताज के लिए दफन स्थान बनवाया और वह भी इतना सुंदर तो इतिहासकार मानने लगे कि निश्चित ही फिर उनका मुमताज के प्रति प्रेम होना ही चाहिए। तब तथाकथित इतिहासकारों ने इसे प्रेम का प्रतीक लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने उनकी गाथा को लैला-मजनू, रोमियो-जूलियट जैसा लिखा जिसके चलते फिल्में भी बनीं और दुनियाभर में ताजमहल प्रेम का प्रतीक बन गया।
मुमताज से विवाह होने से पूर्व शाहजहां के कई अन्य विवाह हुए थे अत: मुमताज की मृत्यु पर उसकी कब्र के रूप में एक अनोखा खर्चीला ताजमहल बनवाने का कोई कारण नजर नहीं आता। मुमताज किसी सुल्तान या बादशाह की बेटी नहीं थी। उसे किसी विशेष प्रकार के भव्य महल में दफनाने का कोई कारण नजर नहीं अता। उसका कोई खास योगदान भी नहीं था। उसका नाम चर्चा में इसलिए आया क्योंकि युद्ध के रास्ते के दौरान उसने एक बेटी को जन्म दिया था।
इतिहासकार पुरुषोत्तम ओक ने अपनी पुस्तक में लिखा हैं कि शाहजहां ने दरअसल, वहां अपनी लूट की दौलत छुपा रखी थी इसलिए उसे कब्र के रूप में प्रचारित किया गया। यदि शाहजहां चकाचौंध कर देने वाले ताजमहल का वास्तव में निर्माता होता तो इतिहास में ताजमहल में मुमताज को किस दिन बादशाही ठाठ के साथ दफनाया गया, उसका अवश्य उल्लेख होता।
मुमताज से विवाह होने से पूर्व एवं उपरांत शाहजहां के कई अन्य विवाह हुए थे। उसके पश्चात मुमताज की पुत्री जहानरा के साथ उनका अवैध संबंध था । जिसको ईस्लाम के अनुसार वो जायज मानता था। तो ये कैसा प्रेम है? ये भी एक प्रश्न यहा पर है।
मुमताज की मृत्यु पर उसकी कब्र के रूप में एक अनोखा खर्चीला ताजमहल बनवाने का कोई कारण नजर नहीं आता। मुमताज किसी सुल्तान या बादशाह की बेटी नहीं थी। उसे किसी विशेष प्रकार के भव्य महल में दफनाने का कोई कारण नजर नहीं अता। उसका कोई खास योगदान भी नहीं था। उसका नाम चर्चा में इसलिए आया क्योंकि युद्ध के रास्ते के दौरान उसने एक बेटी को जन्म दिया था और वह मर गई थी।
शाहजहां के बादशाह बनने के बाद ढाई-तीन वर्ष में ही मुमताज की मृत्यु हो गई थी। इतिहास में मुमताज से शाहजहां के प्रेम का उल्लेख जरा भी नहीं मिलता है। यह तो अंग्रेज शासनकाल के इतिहासकारों की मनगढ़ंत कल्पना है जिसे भारतीय इतिहासकारों ने विस्तार दिया। शाहजहां युद्ध कार्य में ही व्यस्त रहता था। वह अपने सारे विरोधियों की की हत्या करने के बाद गद्दी पर बैठा था।
इसलिए ये प्रेम कथा पर अनेक संदेह उपस्थित होता है।
ब्रिटिश ज्ञानकोष के अनुसार ताजमहल परिसर में अतिथिगृह, पहरेदारों के लिए कक्ष, अश्वशाला इत्यादि भी हैं। मृतक के लिए इन सबकी क्या आवश्यकता?एक मकबरे में स्वाभाविक रुप से ये सब नही दिखती ।
उसके बाद कार्बन डेटिंग कराई गई तो पता चला ताजमहल शहजंहा के जन्म से भी बहुतो पुराना है।
हिन्दू मान्यता के अनुसार वंहा आज भी महल के कुल देवता महादेव जी का मंदिर है जिसे बंद कर दिया गया।
और महल पर संगमरमर चड़वाकर इसे नया रुप दिया गया। पर आस पास में पुराने महल के हिस्से आज भी है जिसे संगमरमर से नही ढका गया था।
#कृष्णप्रिया
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