चेचक के टीके महर्षि चरक जी की देन है
Cambridge university के एक डॉक्टर थे
विलियम अलिवर (William oliver)। अच्छे डक्टर थे क्योंकि सब कुछ लिखकर गये थे।
Vaccine / टीका आविष्कार का श्रेय इनको दिया जाता है हालांकि इन्होंने टीका बनाने की सभी प्रक्रिया भारत से सिखा। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय उनके लेख और रिसर्च कंहा से कैसे आविष्कार किया गया सब है।
जिसमे भारत के दक्षिण के बंगाल राज्य में कोलकाता का जिक्र किया गया।
आपको विश्वास नही हो रहा होगा सायद।
लिंक पड़िए ::: कैम्ब्रिज के
https://www.cambridge.org/core/journals/medical-history/article/variolation-vaccination-and-popular-resistance-in-early-colonial-south-india/1D7AE81A3C2FA807C94049174A15F692
चेचक का टीका और टीके का सिद्धांत
चेचक के टीके का पहला सुत्र मिलता है ''महर्षि चरक'' जी के '' चरक संहिता '' में। वैदिक काल से वौद्ध काल तक इसकी चर्चा प्राचीन गुरुकुल एवं हमारे प्राचीन विश्वविद्यालयो(नालंदा, वल्लभी,तक्षशिला ) पढ़ाया जाता था। मुस्लिम काल में गुरुकुल तथा विश्वविद्याल धीरे धीरे अवलुप्त होने लगे। ब्रिटिश काल में केवल पारम्परिक चिकित्सा के रुप में चिकित्सा को जिन्दा रखा गया था।
सन 1700 तक इंग्लैंड सह पुरे विश्व में चेचक( Pox)एक महामारी जैसा था। कई विद्वान इसके प्रतिरोधक ढूंढ रहे थे। डाक्टर अलिवर को पता लगा ब्रिटिश उपनिवेश भारत में एक पारम्परिक उपाय से इसका प्रतिरोध होता है।
1710 में डॉक्टर ऑलिवर भारत में आया और पूरे बंगाल में घूमा. उसके बाद वो अपनी डायरी में लिखता है," मैंने भारत में आकार ये पहली बार देखा कि चेचक जैसी महामारी को कितनी आसानी से भारतवासी ठीक कर लेते हैं." चेचक उस समय यूरोप के लोगों के लिए महामारी ही थी. इस बीमारी से लाखों यूरोपवासी मर गए थे. उस समय में वो लिखता है कि यहाँ लोग चेचक के टीके लगवाते हैं. वो लिखता है कि,"टीका एक सुई जैसी चीज़ से लगाया जाता था. इसके बाद तीन दिन तक उस व्यक्ति को थोड़ा बुखार आता था. बुखार ठीक करने के लिए पानी की पट्टियां रखी जाती थीं. जड़ीवुटी के औषधि दी जाती थी।
तीन दिन में वो व्यक्ति ठीक हो जाता था. एक बार जिसने टीका ले लिया वो ज़िंदगी भर चेचक से मुक्त रहता था.
फिर ये डॉक्टर वापस लन्दन गया. डॉक्टरों की सभा बुलाई. सभा में भारत में चेचक के टीके की बात बताई. जब लोगों को यकीन नही हुआ तो वो उन सभी डॉक्टरों को भारत लाया. यहाँ उन लोगों ने भी टीके को देखा. फिर उन लोगों ने भारतीय वैद्यों से पूंछा कि इस टीके में क्या है?
तो उन वैद्यों ने बताया कि जो लोग चेचक के रोगी होते हैं हम उनके शरीर का पस निकाल लेते हैं और सुई की नोंक के बराबर यानि कि बहुत ज़रा सा पस किसी के शरीर में प्रवेश करा देते हैं. और फिर उस व्यक्ति का शरीर इस रोग की प्रतिरोधक क्षमता धारण कर लेता है.
डॉ.ऑलिवर आगे लिखता, "जब मैंने इन वैद्यों से पूंछा कि आपको ये सब किसने सिखाया? तो वे बोले कि हमारे गुरु ने. उनके गुरु को उनके गुरु ने सिखाया.मेरे अनुसार कम से कम डेढ़ हज़ार(1500) वर्षों से ये टीका भारत में लगाया जा रहा है."
डायरी के अंत में वो लिखता है, "हमें भारत के वैद्यों का अभिनन्दन करना चाहिए कि वे निशुल्क रूप से घरों में जा-जाकर लोगों को टीका लगा रहे हैं. हम अंग्रेजों को इन वैद्यों ने बिना किसी शुल्क(फीस) के ये विद्या सिखाई है, हमें इनका जितना हो सके उतना आभार करना चाहिए."
आज सारी दुनिया में जिस डॉ.ऑलिवर को चेचक के टीके का जनक माना जाता है वो खुद अपनी डायरी में भारत के वैज्ञानिकों को इस टीके का जनक स्वीकार कर रहा है.
हमारे महान महर्षि चरक जिनके विद्या अभी भी मनुष्य के हितार्थ प्रयोग हो रही है वे सदैव अमर रहे🙏🙏🙏
#कृष्णप्रिया
विलियम अलिवर (William oliver)। अच्छे डक्टर थे क्योंकि सब कुछ लिखकर गये थे।
Vaccine / टीका आविष्कार का श्रेय इनको दिया जाता है हालांकि इन्होंने टीका बनाने की सभी प्रक्रिया भारत से सिखा। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय उनके लेख और रिसर्च कंहा से कैसे आविष्कार किया गया सब है।
जिसमे भारत के दक्षिण के बंगाल राज्य में कोलकाता का जिक्र किया गया।
आपको विश्वास नही हो रहा होगा सायद।
लिंक पड़िए ::: कैम्ब्रिज के
https://www.cambridge.org/core/journals/medical-history/article/variolation-vaccination-and-popular-resistance-in-early-colonial-south-india/1D7AE81A3C2FA807C94049174A15F692
चेचक का टीका और टीके का सिद्धांत
चेचक के टीके का पहला सुत्र मिलता है ''महर्षि चरक'' जी के '' चरक संहिता '' में। वैदिक काल से वौद्ध काल तक इसकी चर्चा प्राचीन गुरुकुल एवं हमारे प्राचीन विश्वविद्यालयो(नालंदा, वल्लभी,तक्षशिला ) पढ़ाया जाता था। मुस्लिम काल में गुरुकुल तथा विश्वविद्याल धीरे धीरे अवलुप्त होने लगे। ब्रिटिश काल में केवल पारम्परिक चिकित्सा के रुप में चिकित्सा को जिन्दा रखा गया था।
सन 1700 तक इंग्लैंड सह पुरे विश्व में चेचक( Pox)एक महामारी जैसा था। कई विद्वान इसके प्रतिरोधक ढूंढ रहे थे। डाक्टर अलिवर को पता लगा ब्रिटिश उपनिवेश भारत में एक पारम्परिक उपाय से इसका प्रतिरोध होता है।
1710 में डॉक्टर ऑलिवर भारत में आया और पूरे बंगाल में घूमा. उसके बाद वो अपनी डायरी में लिखता है," मैंने भारत में आकार ये पहली बार देखा कि चेचक जैसी महामारी को कितनी आसानी से भारतवासी ठीक कर लेते हैं." चेचक उस समय यूरोप के लोगों के लिए महामारी ही थी. इस बीमारी से लाखों यूरोपवासी मर गए थे. उस समय में वो लिखता है कि यहाँ लोग चेचक के टीके लगवाते हैं. वो लिखता है कि,"टीका एक सुई जैसी चीज़ से लगाया जाता था. इसके बाद तीन दिन तक उस व्यक्ति को थोड़ा बुखार आता था. बुखार ठीक करने के लिए पानी की पट्टियां रखी जाती थीं. जड़ीवुटी के औषधि दी जाती थी।
तीन दिन में वो व्यक्ति ठीक हो जाता था. एक बार जिसने टीका ले लिया वो ज़िंदगी भर चेचक से मुक्त रहता था.
फिर ये डॉक्टर वापस लन्दन गया. डॉक्टरों की सभा बुलाई. सभा में भारत में चेचक के टीके की बात बताई. जब लोगों को यकीन नही हुआ तो वो उन सभी डॉक्टरों को भारत लाया. यहाँ उन लोगों ने भी टीके को देखा. फिर उन लोगों ने भारतीय वैद्यों से पूंछा कि इस टीके में क्या है?
तो उन वैद्यों ने बताया कि जो लोग चेचक के रोगी होते हैं हम उनके शरीर का पस निकाल लेते हैं और सुई की नोंक के बराबर यानि कि बहुत ज़रा सा पस किसी के शरीर में प्रवेश करा देते हैं. और फिर उस व्यक्ति का शरीर इस रोग की प्रतिरोधक क्षमता धारण कर लेता है.
डॉ.ऑलिवर आगे लिखता, "जब मैंने इन वैद्यों से पूंछा कि आपको ये सब किसने सिखाया? तो वे बोले कि हमारे गुरु ने. उनके गुरु को उनके गुरु ने सिखाया.मेरे अनुसार कम से कम डेढ़ हज़ार(1500) वर्षों से ये टीका भारत में लगाया जा रहा है."
डायरी के अंत में वो लिखता है, "हमें भारत के वैद्यों का अभिनन्दन करना चाहिए कि वे निशुल्क रूप से घरों में जा-जाकर लोगों को टीका लगा रहे हैं. हम अंग्रेजों को इन वैद्यों ने बिना किसी शुल्क(फीस) के ये विद्या सिखाई है, हमें इनका जितना हो सके उतना आभार करना चाहिए."
आज सारी दुनिया में जिस डॉ.ऑलिवर को चेचक के टीके का जनक माना जाता है वो खुद अपनी डायरी में भारत के वैज्ञानिकों को इस टीके का जनक स्वीकार कर रहा है.
हमारे महान महर्षि चरक जिनके विद्या अभी भी मनुष्य के हितार्थ प्रयोग हो रही है वे सदैव अमर रहे🙏🙏🙏
#कृष्णप्रिया
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