हमारे पुर्बज बंदर नही सप्तर्षि है ।
हमारे पुर्बज बंदर नही सप्तर्षि है (सात महान नक्षत्र उनके नाम पर है और हम सभी के गोत्र इन्ही से है)
Darwin के विकास वाद के मुंह पर सबसे वड़ा तमाचा लैमर्क ने मारा था।
डार्विन का मत ''एमिवा से धीरे धीरे एक कोशिका और बहु कोशिका युक्त प्राणी विकसित हुया। एमिवा से मछली मछली से सुयर सुयर से बंदर बंदर से इंसान ।''
क्या कभी संभव है?
ईश्वर ने 84 लाख योनीया बनाये है। एक प्रकार दुसरी प्रकार से अलग। यहा तक की मनुष्य और बंदर, कुत्ते , तोता एवं बाकी सभी जीवो में भी अलग अलग प्रजाति पाये जाते है डि एन ए अलग होने के बजह से।
तो जैसे एक साधारण व्यक्ति के मन में सवाल आयेगा क्योकि वे अंधे वहरे तो है नही वो समझदार है। वैसे ही लैमर्क जी के मन में भी सवाल आया । उन्होंने सबके सामने ये प्रश्न रखा की अगर डार्विन के का कथन हम मान ले की बंदर से इंसान हो गये तो विकास के क्रम में आगे बड़ता हुया ये चक्का मनुष्य पर आकर ही क्यों रुक गया? और भी उन्नत कुछ बन जाता उल्टा मनुष्य विकसित न होकर क्रमश अपने अंग को विलुप्त कर रहा है।
उस पर भी उनका का एक मत सामने आया कि प्राणी जिस अंग का व्यवहार बंद कर देता है वो अंग विलुप्त हो जाती है। इसका सीधा मतलब ये निकलता है अगर हम हाथ पैर का व्यवहार बंद कर दे तो हाथ पैर विलुप्त हो जायेगा ।
अव लैमर्क जी वो परीक्षण याद आया होगा तो किसी ने चुंहो पर परिक्षण किये उन्होंने 21 प्रजन्म तक चुंहो की पुंछ काटते रहे फिरभी एक भी बीना पुंछ का चुंहा जन्म नही लिया।उन्होंने अंधकार घर में मक्खी पर भी परीक्षण किया परंतु एक भी अंधी मक्खी जन्म नही ली ।
मतलब कितना बड़ा झुठ की इंसान गुफा में रहते थे। शिकार करके खाते है। बंदर थे😂
हमारे सनातन धर्म में ये सृष्टि अनादि काल से है और प्रलय के बाद नष्ट हो जाती है और फिर से भगवान उनका सृजन करते है सारे भौतिक पदार्थ और सारे जैविक पदार्थ का पुनर्निर्माण होता है।
और उनके प्रकार और प्रजातिऔ में भी विभिन्नता पाए जाते है ।
और यही है असली सिद्धांत जिसको विज्ञान नही मानते।
#कृष्णप्रिया
Darwin के विकास वाद के मुंह पर सबसे वड़ा तमाचा लैमर्क ने मारा था।
डार्विन का मत ''एमिवा से धीरे धीरे एक कोशिका और बहु कोशिका युक्त प्राणी विकसित हुया। एमिवा से मछली मछली से सुयर सुयर से बंदर बंदर से इंसान ।''
क्या कभी संभव है?
ईश्वर ने 84 लाख योनीया बनाये है। एक प्रकार दुसरी प्रकार से अलग। यहा तक की मनुष्य और बंदर, कुत्ते , तोता एवं बाकी सभी जीवो में भी अलग अलग प्रजाति पाये जाते है डि एन ए अलग होने के बजह से।
तो जैसे एक साधारण व्यक्ति के मन में सवाल आयेगा क्योकि वे अंधे वहरे तो है नही वो समझदार है। वैसे ही लैमर्क जी के मन में भी सवाल आया । उन्होंने सबके सामने ये प्रश्न रखा की अगर डार्विन के का कथन हम मान ले की बंदर से इंसान हो गये तो विकास के क्रम में आगे बड़ता हुया ये चक्का मनुष्य पर आकर ही क्यों रुक गया? और भी उन्नत कुछ बन जाता उल्टा मनुष्य विकसित न होकर क्रमश अपने अंग को विलुप्त कर रहा है।
उस पर भी उनका का एक मत सामने आया कि प्राणी जिस अंग का व्यवहार बंद कर देता है वो अंग विलुप्त हो जाती है। इसका सीधा मतलब ये निकलता है अगर हम हाथ पैर का व्यवहार बंद कर दे तो हाथ पैर विलुप्त हो जायेगा ।
अव लैमर्क जी वो परीक्षण याद आया होगा तो किसी ने चुंहो पर परिक्षण किये उन्होंने 21 प्रजन्म तक चुंहो की पुंछ काटते रहे फिरभी एक भी बीना पुंछ का चुंहा जन्म नही लिया।उन्होंने अंधकार घर में मक्खी पर भी परीक्षण किया परंतु एक भी अंधी मक्खी जन्म नही ली ।
मतलब कितना बड़ा झुठ की इंसान गुफा में रहते थे। शिकार करके खाते है। बंदर थे😂
हमारे सनातन धर्म में ये सृष्टि अनादि काल से है और प्रलय के बाद नष्ट हो जाती है और फिर से भगवान उनका सृजन करते है सारे भौतिक पदार्थ और सारे जैविक पदार्थ का पुनर्निर्माण होता है।
और उनके प्रकार और प्रजातिऔ में भी विभिन्नता पाए जाते है ।
और यही है असली सिद्धांत जिसको विज्ञान नही मानते।
#कृष्णप्रिया
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