सब को है यज्ञ का अधिकार

वेद स्त्रियों और शूद्रों को भी यज्ञ करने का समान अधिकार देते हैं

Abhinandan Kumar जी ( हिलसा , नालंदा )
की लेख से🙏


कुछ लोग यह बात रखते हैं कि स्त्री यज्ञ करने की अधिकारिणी नहीं है, यहां तक कि #ओ३म् और #गायत्री मंत्र जपने का भी उन्हें अधिकार नहीं है। उनकी यह बात श्रुति प्रमाण के बिलकुल विरुद्ध है। स्त्री के यज्ञ करने के अनेक प्रमाण है किन्तु श्रुति का प्रमाण अन्य शब्द प्रमाणों से अधिक प्रबल है इसलिए हम प्रथम श्रुति के प्रमाण लिखते हैं -

"शुद्धा: पूता योषित यज्ञिया इमा: -अर्थववेद ६/१२२/५
शुद्ध और पवित्र स्त्रियां यज्ञ के योग्य है।

या दम्पति समनसा सुनुत आ च धावत: | देवासो नित्ययाशिरा - ऋग्वेद ८/३१/५
स्त्री पुरुष दोनों को इकट्ठे हो कर प्रशंसा पूर्वक यज्ञ करना चाहिए।

स्त्री के ब्रह्मा बनने का अधिकार-

स्त्री ब्रह्मा बभूविथ -ऋग्वेद ८/३३/११
इन श्रुतियों के प्रमाण से स्त्रियों का यज्ञाधिकार सिद्ध हो जाता है।

अब हम वेद प्रमाण के बाद आप्त ऋषियों के प्रमाण उद्दृत करेंगे जिनसे स्त्रियों का यज्ञाधिकार सिद्ध होता है -
यज्ञ अधिकार किस किस का है किस किस का नही इस बारे में वर्णन करते हुए कात्यायन ऋषि कात्यायन श्रोत सूत्र अनुसार निम्न सूत्र उपदेश करते है -

अथतोsधिकार : -१/१/१ कात्यायन श्रोत सूत्र श्रोत यज्ञ के लिए कौन अधिकारी है इसका कथन करते हैं।
फिर ३ और ४ सूत्र में लिखा है -

सर्वेषामविशेषात -१/१/३
अर्थात सभी में कामना पाए जाने से सभी को यज्ञ करने का अधिकार है।

मनुष्याणावाssरम्भसामार्थ्यात -१/१/४
मनुष्य मात्र में योग्यता होने से मनुष्य को यज्ञ का अधिकार है।
अब किन किन को योग्यता के आधार पर यज्ञ का अधिकार है और किन किन को नही इसका वर्णन करते है -

अंगहीनाsश्रोतियषढशुद्रवर्जनम -१/१/५
मनुष्यों में अंगहीन ,अश्रोतीय ,नपुंसक और शुद्र को श्रोत ,गृह आदि यज्ञ का निषेध है।
यहा निषेध का कारण योग्यता का न होना है - अंगहीन बहरा ,अँधा आदि होता है इससे वह मन्त्र जप ,कोई शुद्र वेद मन्त्र न जानता या अर्थ न समझे हो तो ।
यज्ञ क्रिया सुनने करने में असमर्थ होने से यज्ञ नहीं कर सकता है। इस बारे में मीमांसा दर्शन में स्पष्ट स्पष्टीकरण प्राप्त होता है -

"अंगहीनश्च तध्दर्मा "- मीमासा ६/१/४१
अंगहीन को यज्ञ का अधिकार है ऐसा कहें तो
उत्पततौ नित्यसंयोगात -६/१/४२
इसके शाबर भाष्य में लिखा है - "

नाधिकियत इति। कुत:? शक्त्यभावात..... अर्थात अनाधिकार किस हेतु से ? शक्ति का अभाव होने से... इससे स्पष्ट है कि शुद्र मूर्ख बिना पढ़ा लिखा होने से मन्त्र आदि बोलना ,अन्य क्रियाओं में असमर्थ होने से और अंगहीन शक्ति ना होने से ,नपुसंक ग्रहस्थ आश्रम अधिकारी न होने से और अश्रोतीय अर्थात संयम आदि न कर पाने से श्रोत ,स्मार्त कर्म में अनाधिकार करा है।

 अब किन किन का अधिकार है यह लिखते हैं -

ब्राह्मण -राजन्य -वैश्याना श्रुते -१/१/६
अर्थात ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य का अधिकार है।

स्त्री चाsविशेषात - १/१/७
और स्त्री का भी अधिकार है।

उपरोक्त कात्यायन सूत्र में निषेध और अधिकार दोनों हमने देखे निषेध में कहीं भी नहीं लिखा कि स्त्री का यज्ञ में निषेध है बल्कि अधिकार में स्त्री को यज्ञ का अधिकार लिखा है।
अत: वेदों को पढ़ने के अधिकार सभी को है।

इसका प्रमाण ये वेद मन्त्र भी है -

यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः ।
*ब्रह्मराजन्याभ्या शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय ।। यजुः० अ० 26 मं॥2॥

 भावार्थ- परमेश्वर स्वयं कहता है कि मैंने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र,अपने भृत्य वा स्त्रियादि के लिये भी वेदों का प्रकाश किया है; अर्थात् सब मनुष्य वेदों को पढ़ पढ़ा और सुन सुनाकर विज्ञान को बढ़ा के अच्छी बातों का ग्रहण और बुरी बातों का त्याग करके दुःखों से छूट कर आनन्द को प्राप्त हों।

 *वेद के इन सभी प्रमाणों से सिद्ध होता है कि वेद समस्त मानव जाति को समान अधिकार प्रदान करते हैं। लेकिन तथाकथित स्वार्थी धर्माचार्यों ने ही स्त्रियों और शूद्रों को दोयम दर्जे का मानकर स्वयं की सत्ता को ही महत्व देते हुए उन्हें वेद पढ़ने और यज्ञ करने के अधिकार से वंचित कर दिया था।

विवाह भी अति महत्वपूर्ण यज्ञ है जिसमे स्त्री भाग लेती है।

#कृष्णप्रिया

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