ईश्वरीय कण/ कण-कण में ईश्वर

ईश्वरीय कण (God Particles)/कण-कण में ईश्वर!
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1) ऋग्वेद में एक श्लोक आता है-

"ईशा वास्यम मिदं सर्वम यत किंचियाम जगत्याम जगत।"

 अर्थात ईश्वर इस जग के कण-कण में विद्यमान हैं। यह बात सार्वभौमिक सत्य भी है और हमारी वैदिक देशना का मूल तत्व भी है। भारतीय आध्यात्म व हिन्दू जीवन-दर्शन का अभिन्न सूत्र भी यही मूल वाक्य है।

2)दुसरा श्लोक आता है भगवत गीता से

ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।

भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।।18.61।।

 हे अर्जुन समस्त भूतों को ईश्वर अपनी माया शक्ति से घुमाता है (भ्रामयन्) और भूतमात्र के हृदय(अभ्यन्तर) में स्थित रहता है।।

3) तीसरा श्लोक भगवत गीता से

''बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च ।
सूक्षत्वात्तदविज्ञेयं दूरस्थं चान्तिके च तत्।।''

वो चरा चर के सव भूतो मे(पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु, आकाश ) व्याप्त है। और चराचर उसमे है।

और वो सुक्ष्म होने से अविज्ञेय(साधारण ज्ञान ईन्द्रिय के अगोचर) निकट मे भी वो दुर मे भी वही है।

शुक्र है वैज्ञानिक भी धीरे -धीरे ही सही भारतीय ऋषियों  की वाणी बोलने लगे हैं। बुधवार को स्विटज़रलैंड के वैज्ञानिक अपनी जिस खोज पर फूले नहीं समा रहे हैं ,वह खोज भारत में हज़ारों वर्ष पूर्व कर ली गयी थी।स्विटज़रलैंड में यूरोपियन सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न ) के वैज्ञानिकों ने घोषणा की है कि ‘गाड पार्टिकल ‘यानि ईश्वरीय कण की खोज कर ली गई है।इसे वैज्ञानिक अपनी भाषा में ‘हिग्स बोसोन ‘के नाम से भी प्रतिपादितकर रहे हैं।इस खोज को इन वैज्ञानिको ने गत 100 वर्षों सबसे बड़ी उपलब्धि की संज्ञा दी है।
 इस पार्टिकल की खोज के लिए ही फ्रांस और स्विटजरलैंड की सीमा पर 17 मील लंबी सुरंग बनाई गई थी जिसमें स्थित एक खास मशीन ‘द लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर’ में प्रयोग किए जा रहे थे। 1960 के दशक में ब्रिटिश मूल के वैज्ञानिक प्रोफेसर पीटर हिग्स ने एक सिद्धांत को विस्तार दिया ।जिसके अनुसार भौतिकी विज्ञान के विशेषज्ञ मानते हैं ‘हिग्स बोसोन‘ कण ही समस्त सब-एटॉमिक जगत को मास यानी द्रव्यमान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पार्टिकल फिजिक्स के सबसे अंतिम कड़ी हिग्स बोसोन कणों का महत्व इससे समझा जा सकता है कि अगर ये कण न हों, तो विज्ञान द्रव्य की व्याख्या करने में असमर्थ रहेगा ।
हिग्स बोसोन कण ही हमें यह बताते हैं कि दूसरे सभी कणों का कुछ द्रव्यमान क्यों होता है ? गॉड पार्टिकल की चर्चा इस धारणा के साथ शुरू हुई थी कि किसी भी चीज को भार देने वाले अणुओं में अपना कोई भार नहीं होता, लेकिन यदि कणों में भार नहीं होता, तो कोई भी चीज यानी अणु-परमाणु या फिर यह ब्रह्मांड भी नहीं बन सकता था। नियमानुसार अगर यह द्रव्यमान नहीं होगा तो किसी भी चीज के परमाणु उसके भीतर घूमते रहेंगे और आपस में जुड़ेंगे ही नहीं। इस सिद्धांत के मुताबिक हर खाली जगह में एक शून्य स्थान है। इसे साइंटिस्ट ‘हिग्स फील्ड‘ कहते हैं। इस फील्ड में ही किसी अणु को भार प्रदान करने वाले कण होते हैं जिन्हें हिग्स बोसोन कहा गया है।  इन हिग्स कणों की थ्योरी को भारतीय मूल के भौतिक विज्ञानी  ''सत्येंद्र नाथ बोस'' ने अपने अनुसंधानों के सहारे आगे बढ़ाया था, इसलिए इन्हें दोनों वैज्ञानिकों के संयुक्त नाम ‘हिग्स बोसोन‘ थ्योरी के नाम से जाना गया ।
                                                                                               
असल में वैज्ञानिक जिस ईश्वरीय कण को खोजने की बात कर रहे हैं ,वो भारतीय संस्कृति और सभ्यता का वो एक ऐसा आधार बिंदु है,जहाँ से ज्ञान की परम्परा का श्री गणेश हुआ। हज़ारों  वर्ष पूर्व भारतीय ऋषियों ने इस ऊर्जा क्षेत्र को न  सिर्फ अनुभव ही किया था ,अपितु अपने अनेक ग्रथों में इसका सविस्तार वर्णन  भी किया था। इतिहासकार मानतें हैं की  ‘रामायण काल‘ ‘महाभारत काल ‘से 5 हज़ार वर्ष पूर्व  रहा था और आज महाभारत को भी 5 हज़ार वर्ष से अधिक हो चुके हैं अतः भारत में वेदों की उत्पत्ति का काल लगभग 10 हज़ार वर्ष से काफी पहले का माना गया है. क्योंकि रामायण काल में जीवन का सामाजिक ताना -बाना वैदिक नियमों के अनुसार निर्धारित था।
सबसे प्राचीन वेद ‘ऋगवेद‘ में एक श्लोक आता है

 –‘ईशावास्यम इदं सर्वं यद्किंच्याम जगत्यां जगत ‘

 अर्थात –‘ईश्वर इस जग के कण–कण में विद्यमान हैं।

हिग्स बोसोन की थ्योरी भी यही बात बोलती है थोड़े से शाब्दिक परिवर्तन के साथ सिद्धांत कहता है सभी कणों का कुछ द्रव्यमान क्यों होता है ? किसी भी चीज को भार देने वाले अणुओं में अपना कोई भार नहीं होता, लेकिन यदि कणों में भार नहीं होता, तो कोई भी चीज यानी अणु-परमाणु या फिर यह ब्रह्मांड भी नहीं बन सकता था।

‘न संदृशे तिष्ठति रूपमस्य न चक्षुषा पश्यति कश्चैन्नम

हदा मनीषा मनसभि क्ल्रिप्तोये एतदिविदुरमृतास्ते भवन्ति ।।‘

(कठोपनिषद /अध्याय –2/बल्ली-3/श्लोक –9)

अर्थात उस ईश्वरीय अनुभूति का दृश्य दृष्टि से परे है।उन ईश्वरीय कणों को देखने और अनुभव करने के लिए इन्द्र्यीतीत अनुभूति की आवश्यकता है।आँख ही क्या उस परम ऊर्जा के क्षेत्र को सामान्यता मानवीय अंगों से देखा जाना संभव नहीं है।

उधर देखिये विज्ञान क्या कहता है – यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के विज्ञानियों को 1980 में कुछ ऐसे संकेत मिले हैं कि ये कण होते हैं। 90 के दशक में साइंस पत्रिका ‘नेचर‘ के हवाले से शोध के प्रमुख  पीटर रेंटन ने यह स्पष्ट किया था कि मूलभूत कणों की करीब 10 खरब टक्करों में कोई एक मौका ऐसा आता है जब वोसन कणो के प्रतिच्छाया को पकड़ा जा सकता है।
यह काम भी इतना आसान नही है , क्योंकि इस प्रक्रिया मे भी वहुत वड़ी मात्रा मे उर्जा निकलती है।

इसके इलावा, चुंकी इये कण अत्यधिक क्षणभंगुर होते हैं और पैदा होने के कुछ ही देर बाद नष्ट हो जाते हैं,इसलिए इसे देख पाना वहुत मुस्किल है।

वेद कहता है ''न तस्य प्रतिमा अस्ति''

उनका प्रतिरूप देखा नही जा सकता।

ऐसे भागवत पुराण और दर्शन शास्त्र मे कई श्लोक भरे पड़े है। मगर हमेशा से संस्कृत ग्रन्थ से दुर रहते हुए हमको वो ज्ञान प्राप्त नही हो पाया।

सीधे सीधे भाषा मे उस उर्जा कण गाॅड पार्टिकल या हिग्स  बोसोन कण कुछ भी कहे उसके विना परमाणु परस्पर संयुक्त हो कर पदार्थ का संरचना नही कर सकता।

तो यह वात तो ऋषि-महर्षि कव के कह चुके।
हमारे अवहेलना की बजह से उनके तत्व को हम समझ नही पाये।

#कृष्णप्रिया

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