Dark Matter And Dark Energy in VEDA

Dark Matter And Dark Energy
 श्याम पदार्थ और श्याम उर्जा.

पदार्थ…हम पदार्थ को परमाणु, सितारे, आकाशगंगाए, ग्रह, पेड़, चट्टाने और खुद हमारे शरीर के रूप में जानते हैं. समग्र ब्रह्म्ड में केवल 5% जितना ही पदार्थ मौजूद हैं. बाकि 25% काला पदार्थ (Dark Matter) और 70% काली ऊर्जा (Dark Energy) है.

यह दोनों ही अदृश्य हैं. यह अजीब बात हैं क्योंकि जो ब्रह्माण्ड हम देखते और महसूस करते हैं वह वास्तव में वास्तविकता का केवल छोटा सा अंश भर हैं. तो चलिए आज की इस पोस्ट में जानते हैं डार्क मेटर और डार्क एनर्जी के बारे में.

डार्क मेटर – श्याम पदार्थ वास्तव में हमारे पास ऐसा कोई भी सुराग नहीं हैं की जिससे हम जान सके की डार्क मेटर और डार्क एनर्जी आखिर हैं क्या? और वह काम कैसे करते हैं? श्याम पदार्थ एक ऐसी सामग्री हैं जो ब्रह्माण्ड में आकाशगंगाओं का अस्तित्व बनाए रखता हैं. जब हम इस बात की गणना करते हैं की ब्रह्माण्ड आखिर ऐसा क्यों हैं जैसा वह वास्तव में हैं, तब यह जल्दी से स्पष्ट हो जाता हैं की ब्रह्माण्ड में पर्याप्त मात्रा में पदार्थ नहीं हैं. यहाँ पर प्रत्यक्ष पदार्थ का गुरुत्वाकर्षण आकाशगंगाए और अन्य जटिल संरचनाए बनाने के लिए पर्याप्त मजबूत नहीं है. अगर वह मजबूत होता आकाशगंगाओं की जगह सारे ब्रह्माण्ड में सभी जगह पर तारे बिखरे होते, उनके झुंड नहीं.

ब्रह्माण्ड में कुछ ऐसा हैं जो प्रकाश को उत्सर्जित या प्रतिबिंबित नहीं करता हैं. कुछ अंधकारमय. लेकिन श्याम पदार्थ के अस्तित्व की गणना करने में सक्षम होने के अलावा हम उसे एक प्रकार से देख सकते हैं. उच्च सकेन्द्रण वाले स्थानों पर श्याम पदार्थ उसके पास से गुजर रहे प्रकाश को मोड़ देता हैं. इसका मतलब वहां पर कुछ मौजूद हैं जो गुरुत्वाकर्षण के साथ क्रिया-प्रतिक्रिया करता हैं.

हम जानते हैं की श्याम पदार्थ केवल बिना सितारों वाला एक बादल नहीं हैं, क्योंकि वह किसी प्रकार के कणों का उत्सर्जन करता हैं जिनके बारे में हम पता लगा सकते हैं. श्याम पदार्थ एंटीमेटर भी नहीं हैं, क्योंकि एंटीमेटर सामान्य पदार्थ के साथ प्रतिक्रिया कर के अनूठे प्रकार के गामा किरणों का उत्पादन करता हैं. डार्क मेटर ब्लैक होल से भी नहीं बना हैं, क्योंकि यह श्याम पदार्थ हर जगह पर बिखरा हुआ होता हैं.

अधिकांश, हम तीन बातें निश्चित तौर पर जानते हैं,
1). वहां पर कुछ तो हैं.
2). वह गुरुत्वाकर्षण के साथ क्रिया-प्रतिक्रिया करता हैं.
3). वह बहुत सारा हैं.

डार्क मेटर शायद एक जटिल और अनोखे कण से बना है, जो किसी भी तरह के पदार्थ और प्रकाश के साथ प्रतिक्रिया नहीं करता हैं. लेकिन इसके बारे में हम अभी पक्के तौर पर नहीं जानते हैं.

डार्क एनर्जी (श्याम ऊर्जा) और भी अजीब और रहस्यमयी है. हम ना ही इसका पता लगा सकते हैं, ना ही इसको माप सकते हैं और ना ही इसको टेस्ट कर सकते हैं. लेकिन हम बहुत ही स्पष्ट रूप से इसके प्रभाव देख सकते हैं.

1929 में, एडवर्ड हबल ने जांच की कि कैसे दूर की आकाशगंगाओं के द्वारा उत्सर्जित किए गए प्रकाश की तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) अंतरिक्ष में यात्रा करते समय विद्युत-चुम्बकीय वर्णक्रम (electromagnetic spectrum) के लाल रंग के अंत की दिशा की तरफ शिफ्ट हो जाती है. हबलने यह निर्धारित किया की ऐसा इस वजह से होता हैं क्योंकि ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा हैं.

अभी हाल की खोजो से यह पता लगा हैं की ब्रह्माण्ड के फैलने की गति accelerate हो रही हैं. डार्क एनर्जी – श्याम उर्जा इसके पहले ऐसा सोचा गया था की गुरुत्वाकर्षण का खिंचाव या तो ब्रह्माण्ड के विस्तारको धीमा कर देंगा या फिर पूरा ब्रह्माण्ड वापस खुद के ही अन्दर किसी एक बिन्दु में ढह जाएंगा.

अंतरिक्ष फैलने के साथ कभी अपने गुण नहीं बदलता हैं. नयी space लगातार बनती जा रही हैं. आकाशगंगाए गुरुत्वाकर्षण के द्वारा समूहों में कस ली गई हैं, इसलिए हम हमारे दैनिक जीवन में इस होने वाले विस्तार का अनुभव नहीं कर पाते. लेकिन हम हमारे आसपास हर जगह इसे देखते हैं.

ब्रह्माण्ड में जहाँ जहाँ खाली जगह हैं, वहां हर सेकंड अन्य रचनाए हो रही हैं. ऐसा प्रतीत हो रहा है की श्याम उर्जा कुछ इस तरह की उर्जा हैं जो खाली जगह के अंतर्भूत हो सकती हैं.खाली जगह के पास संयुक्त ब्रह्माण्ड में मौजूद सभी चीज़ों की तुलना में ज्यादा अधिक ऊर्जा है.

हमारे पास श्याम ऊर्जा क्या हो सकती है इसके बारे में कई विचार हैं. एक विचार ऐसा हैं की श्याम उर्जा कोई वस्तु नहीं हैं बल्कि वह अंतरिक्ष की एक संपत्ति हैं. खाली जगह nothing (कुछ नहीं) नहीं हैं, उसके पास अपनी खुद की उर्जा हैं. यह अधिक space उत्पन्न करती हैं और काफी सक्रिय है. तो जैसे जैसे ब्रह्माण्ड का विस्तार होता हैं तब दो आकाशगंगाओं के बीच अधिक और अधिक खाली जगह उत्पन्न होती रहती हैं. उनके बीच का अंतर बढ़ता ही जाता हैं और जो ब्रह्माण्ड के विस्तार को तेजी की तरफ ले जाता हैं.

 यह विचार, आइंस्टीन के द्वारा 1917 में दीये गए सिद्धांत “ब्रह्माण्ड विज्ञान के स्थिरांक की अवधारणा (concept of a cosmologyical constant)” से काफी मेल खाता हैं. एक बल जो गुरुत्वाकर्षण बल के साथ प्रतिक्रिया करता हैं या उसे थाम लेता हैं. समस्या केवल यह है की, जब हमने इस ऊर्जा की राशि की गणना करने की कोशिश की तब इसका परिणाम एकदम गलत और अजीब था. इसलिए इस विचार से केवल कंफ्यूजन ही पैदा होता हैं.

एक विचार यह हैं की, यह खाली जगह वास्तव में अस्थायी और आभासी कणों से भरी हुई हैं. यह कण स्वतः और लगातार nothing (कुछ नहीं) से उत्पन्न होते हैं और वापस nothing में गायब हो जाते हैं. इन कणों में स्थित उर्जा श्याम उर्जा या डार्क एनर्जी हो सकती हैं.

वेद में आते है अब•••••

नासदीय सूक्त ऋग्वेद के 10 वें मंडल का 129 वां सूक्त है। इसका सम्बन्ध ब्रह्माण्ड विज्ञान और ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ है। माना जाता है की यह सूक्त ब्रह्माण्ड के निर्माण के बारे में काफी सटीक तथ्य बताता है। इसी कारण दुनिया में काफी प्रसिद्ध हुआ है।

नासदीय सूक्त में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का दार्शनिक वर्णन अत्यन्त उत्कृष्ट रूप मे किया गया है ऋषियों के अद्भुत् इस ज्ञान से सिद्ध होता है कि समस्त संसार मे सभ्यता की पराकाष्ठा भारत मे देखी जा सकती थी और यह अतिशयोक्ति नही होगी ।

नासदीय सूक्त के रचयिता ऋषि प्रजापति परमेष्ठी हैं। इस सूक्त के देवता भाववृत्त है। यह सूक्त मुख्य रूप से इस तथ्य पर आधारित है कि ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई होगी।

सृष्टि-उत्पत्ति सूक्त

नासदासीन्नो सदासात्तदानीं नासीद्रजो नोव्योमा परोयत्।
किमावरीवः कुहकस्य शर्मन्नंभः किमासीद् गहनंगभीरम् ॥१॥

अन्वय- तदानीम् असत् न आसीत् सत् नो आसीत्; रजः न आसीत्; व्योम नोयत् परः अवरीवः, कुह कस्य शर्मन् गहनं गभीरम्।
अर्थ- उस समय अर्थात् सृष्टि की उत्पत्ति से पहले प्रलय दशा में असत् अर्थात् अभावात्मक तत्त्व नहीं था। सत्= भाव तत्त्व भी नहीं था, रजः=स्वर्गलोक मृत्युलोक और पाताल लोक नहीं थे, अन्तरिक्ष नहीं था और उससे परे जो कुछ है वह भी नहीं था, वह आवरण करने वाला तत्त्व कहाँ था और किसके संरक्षण में था। उस समय गहन= कठिनाई से प्रवेश करने योग्य गहरा क्या था, अर्थात् वे सब नहीं थे।

न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्या अह्न आसीत्प्रकेतः।
अनीद वातं स्वधया तदेकं तस्मादधान्यन्न पर किं च नास ॥२॥

अन्वय-तर्हि मृत्युः नासीत् न अमृतम्, रात्र्याः अह्नः प्रकेतः नासीत् तत् अनीत अवातम, स्वधया एकम् ह तस्मात् अन्यत् किंचन न आस न परः।
'अर्थ – उस प्रलय कालिक समय में मृत्यु नहीं थी और अमृत = मृत्यु का अभाव भी नहीं था। रात्री और दिन का ज्ञान भी नहीं था उस समय वह ब्रह्म तत्व ही केवल प्राण युक्त, क्रिया से शून्य और माया के साथ जुड़ा हुआ एक रूप में विद्यमान था, उस माया सहित ब्रह्म से कुछ भी नहीं था और उस से परे भी कुछ नहीं था।

तम आसीत्तमसा गूढमग्रेऽप्रकेतं सलिलं सर्वमा इदं।
तुच्छ्येनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिना जायतैकं॥३॥

अन्वय -अग्रे तमसा गूढम् तमः आसीत्, अप्रकेतम् इदम् सर्वम् सलिलम्, आःयत्आभु तुच्छेन अपिहितम आसीत् तत् एकम् तपस महिना अजायत।
अर्थ –सृष्टिके उत्पन्नहोनेसे पहले अर्थात् प्रलय अवस्था में यह जगत् अन्धकार से आच्छादित था और यह जगत् तमस रूप मूल कारण में विद्यमान था,अज्ञात यह सम्पूर्ण जगत् सलिल(तरल)रूप में था। अर्थात् उस समय कार्य और कारण दोंनों मिले हुए थे यह जगत् है वह व्यापक एवं निम्न स्तरीय अभाव रूप अज्ञान से आच्छादित था इसीलिए कारण के साथ कार्य एकरूप होकर यह जगत् ईश्वर के संकल्प और तप की महिमा से उत्पन्न हुआ।

कामस्तदग्रे समवर्तताधि मनसो रेतः प्रथमं यदासीत्।
सतो बन्धुमसति निरविन्दन्हृदि प्रतीष्या कवयो मनीषा ॥४॥

अन्वय-अग्रे तत् कामः समवर्तत;यत्मनसःअधिप्रथमं रेतःआसीत्, सतः बन्धुं कवयःमनीषाहृदि प्रतीष्या असति निरविन्दन
अर्थ – सृष्टि की उत्पत्ति होने के समय सब से पहले काम=अर्थात् सृष्टि रचना करने की इच्छा शक्ति उत्पन्न हुयी, जो परमेश्वर के मन मे सबसे पहला बीज रूप कारण हुआ; भौतिक रूप से विद्यमान जगत् के बन्धन-कामरूप कारण को क्रान्तदर्शी ऋषियो ने अपने ज्ञान द्वारा भाव से विलक्षण अभाव मे खोज डाला।

तिरश्चीनो विततो रश्मिरेषामधः स्विदासी३दुपरि स्विदासी३त्।
रेतोधा आसन्महिमान आसन्त्स्वधा अवस्तात्प्रयतिः परस्तात् ॥५॥

अन्वय-एषाम् रश्मिःविततः तिरश्चीन अधःस्वित् आसीत्, उपरिस्वित् आसीत्रेतोधाः आसन् महिमानःआसन् स्वधाअवस्तात प्रयति पुरस्तात्।

अर्थ-पूर्वोक्त मन्त्रों में नासदासीत् कामस्तदग्रे मनसारेतः में अविद्या, काम-संकल्प और सृष्टि बीज-कारण को सूर्य-किरणों के समान बहुत व्यापकता उनमें विद्यमान थी। यह सबसे पहले तिरछा था या मध्य में या अन्त में? क्या वह तत्त्व नीचे विद्यमान था या ऊपर विद्यमान था? वह सर्वत्र समान भाव से भाव उत्पन्न था इस प्रकार इस उत्पन्न जगत् में कुछ पदार्थ बीज रूप कर्म को धारण करने वाले जीव रूप में थे और कुछ तत्त्व आकाशादि महान रूप में प्रकृति रूप थे; स्वधा=भोग्य पदार्थ निम्नस्तर के होते हैं और भोक्ता पदार्थ उत्कृष्टता से परिपूर्ण होते हैं।

को आद्धा वेद क इह प्र वोचत्कुत आजाता कुत इयं विसृष्टिः।
अर्वाग्देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आबभूव ॥६॥

अन्वय-कः अद्धा वेद कः इह प्रवोचत् इयं विसृष्टिः कुतः कुतः आजाता, देवा अस्य विसर्जन अर्वाक् अथ कः वेद यतः आ बभूव।
अर्थ - कौन इस बात को वास्तविक रूप से जानता है और कौन इस लोक में सृष्टि के उत्पन्न होने के विवरण को बता सकता है?

डार्क मैटर का रहस्य

डार्क मैटर यानी काला पदार्थ अदृश्य है, वैज्ञानिक सालों से डार्क मैटर को समझने की कोशिश में जुटे हुए हैं. कहने को तो तीन चौथाई ब्रह्मांड उसी का बना है, पर देखने पर वह कहीं रत्ती भर भी दिखाई नहीं पडता.ब्रह्मांड की अनंत आकाशगंगाओं के नब्बे फीसदी से ज्यादा पदार्थ अनजाने हैं.

डार्कमैटर यानी ऐसे तत्व, जो न तो प्रकाश छोड़ते हैं, न सोखते हैं और ना ही परावर्तित करते हैं. खगोलशास्त्री भी ब्रह्मांड का सिर्फ छठा हिस्सा देख पाते हैं. हाइडेलबर्ग में माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट के रिसर्चर गिरीश कुलकर्णी पिछले दस साल के जमा डाटा पर काम कर रहे हैं.

 गिरीश के मुताबिक, "डार्क मैटर क्या है, यह सभी लोग समझना चाहते हैं लेकिन कोई भी जानता नहीं है. तो इस सवाल का कोई जवाब नहीं है. लेकिन मैं यह बता सकता हूं कि डार्क मैटर की हमें जरूरत क्या है और लोग क्यों डार्क मैटर, डार्क मैटर कहते रहते हैं.

"क्या है वो अनजाना अगर पूरे आकाशगंगाओं और तारों के द्रव्य जोड़ दिए जाएं, तो यह ब्रह्मांड का सिर्फ चार फीसदी हिस्सा है. बाकी डार्क मैटर हैं, अनजाने तत्व. वैज्ञानिकों का कहना है कि कई बार प्रयोगों में ये सामान्य तत्वों से टकराते हैं.

गिरीश समझाने की कोशिश करते हैं कि आखिर डार्क मैटर क्या है, "आजकल कई प्रयोग हो रहे हैं. हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में हम जो वस्तुएं देखते हैं. वो जिन चीजों की बनी हुई है. जो हमारे तत्व हैं, हाइड्रोजन, हीलियम, कार्बन और ये सब... इन मूलभूत तत्वों से वो समझना नामुमकिन है.. उन प्रयोगों के नतीजे और इस प्रकार से...एक नए प्रकार के मटेरियल की आवश्यकता पड़ती है और उसको हम डार्क मैटर कहते हैं.

"जब आकाशगंगाएं नहीं थी 13 अरब साल पहले ब्रह्मांड में आकाशगंगाएं नहीं थीं. वैज्ञानिकों को इस तथ्य का पता भी हाल ही में चला है. यानी आज जो दिखता है, वह पहले नहीं दिखता था. जब ब्रहमांड की सृष्टि हुई तो उस समय अचानक इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन की बाढ़ आई. रिसर्चरों का अनुमान है कि इन इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन में कंपन से ही आकाशगंगाओं की रचना हुई. लेकिन यह पता नहीं लग पाया है कि कंपन आखिर क्यों हुआ.

बोसोन कण की खोज करने वाली स्विट्जरलैंड की प्रतिष्ठित सर्न प्रयोगशाला अगले साल डार्क मैटर की खोज का प्रयोग शुरू करने वाली है. लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर उस गति तक पहुंचना चाहता है, जहां से पैदा होने वाली ऊर्जा डार्क मैटर के सवाल का जवाब दे सके. म्यूनिख में माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट के हुबर्ट क्रोहा कहते हैं, "कई सवालों के जवाब तलाशने हैं. हमारे पास कई विचार हैं लेकिन आखिरी जवाब सिर्फ प्रयोग से आ सकता है. और ये जवाब इन्हीं एलएचसी प्रयोग से आ सकते हैं. और यह एक दिलचस्प पड़ाव पर है, कि क्या हमें नए संकेत मिलेंगे, जो स्टैंडर्ड मॉडल से अलग होंगे, जो हमें उन सवालों का जवाब देंगे जो अभी भी हमारे सामने हैं.

"सर्न की ही एक थ्योरी के मुताबिक डार्क मैटर के कण इतने छोटे हो सकते हैं कि पकड़ में न आ पाएं. वैसी हालत में अगर ये अपने साथ कुछ ऊर्जा भी ले उड़ें. इससे उनके अस्तित्व के बारे में पता लग सकेगा।

 श्याम पदार्थ या डार्क मैटर क्या है?!!!!

 १९२८ मे नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिक विज्ञानी मैक्स बार्न ने जाट्टीन्जेन विश्वविद्यालय मे कहा था कि “जैसा कि हम जानते है, भौतिकी अगले छः महीनो मे सम्पूर्ण हो जायेगी।” उनका यह विश्वास पाल डीरेक के इलेक्ट्रान की व्यवहार की व्याख्या करने वाले समीकरण की खोज पर आधारित था।

यह माना जाता था कि ऐसा ही समीकरण प्रोटान के लिए भी होगा। उस समय तक इलेक्ट्रान के अतिरिक्त प्रोटान ही ज्ञात मूलभूत कण था। इस समीकरण के साथ सैद्धांतिक भौतिकी (Theoritical Physics) का अंत था, इसके बाद जानने के लिए कुछ भी शेष नही रह जाता।

लेकिन कुछ समय बाद एक नया कण न्यूट्रॉन खोजा गया। इसके बाद मानो भानुमती का पिटारा खुल गया! इतने सारे नये कण खोजे गये कि उनके नामकरण के लीए लैटीन अक्षर कम पढ़ गये।

अब हम जानते है कि साधारण पदार्थ फर्मीयान समूह के कणो से बना होता है। इस समूह मे छः प्रकार के क्वार्क तथा छः प्रकार के लेप्टान होते है। प्रति-पदार्थ के लिए भी इसी तरह छः प्रकार के प्रति-क्वार्क तथा छः प्रकार के प्रति-लेप्टान होते है। पदार्थ या प्रति पदार्थ को बार्यानिक पदार्थ भी कहते है।

इसके अतिरिक्त बल वाहक कण बोसान भी हैं। मैक्स बार्न का सपना तोड़ने के लिए मानक प्रतिकृती के कण ही काफी नही थे कि एक और रहस्यमय पदार्थ सामने आ गया जिसे श्यामपदार्थ (Dark Matter) कहते है।

अनुपस्थित द्रव्यमान समस्या
-Missing mass problem

१९३३ मे खगोलविज्ञानी फ़्रिट्झ झ्वीकी आकाशगंगाओं की गति का अध्य्यन कर रहे थे। झ्वीकी ने एक आकाशगंगाओं के समुह की दीप्ती के आधार पर उनके द्रव्यमान की गणना की। उन्होने दूसरी विधी से उसी आकाशगंगाओं के समुह का द्रव्यमान की गणना की, उन्होने पाया कि दूसरी गणना से प्राप्त द्रव्यमान पहली गणना से ४०० गुणा ज्यादा था।

निरिक्षित द्रव्यमान तथा गणना किये गये द्रव्यमान का अंतर “अनुपस्थित द्रव्यमान समस्या (Missing mass problem)” के नाम से जाता है। झ्वीकी की इस खोज को १९७० दशक के अंत तक भुला दिया गया , जब कुछ वैज्ञानिको ने पाया कि उनके कुछ निरिक्षणो की व्याख्या भारी मात्रा मे किसी अज्ञात पदार्थ से ही हो सकती है।

वैज्ञानिको के अनुसार ब्रह्मांड की संरचना और उसके आकार के लिए आधार एक अज्ञात, अदृश्य पदार्थ प्रदान कर रहा है। वर्तमान मे वैज्ञानिक इस रहस्यमय श्याम पदार्थ की खोज आकाशगंगाओकी गति की व्याख्या के अतिरिक्त ब्रह्मांड की उत्पत्ति तथा भविष्यके सिद्धांतो के प्रमाणीकरण के लिए कर रहे है।

श्याम पदार्थ की मात्रा
श्याम पदार्थ की मात्रा द्रव्यमान और भार :

साधारण व्यक्ति के लिए दोनो एक ही है। वैज्ञानिको के लिए द्रव्यमान किसी पदार्थ की मात्रा को कहते है जबकि भार उस पदार्थ पर गुरुत्वाकर्षण से पड़ने वाला प्रभाव है। भार पदार्थ के द्रव्यमान पर निर्भर करता है। जितना ज्यादा द्रव्यमान होगा, उतना ज्यादा ही गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा आकर्षण और उतना ही ज्यादा भार।

 जब कोई अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष मे होता है, तब वह भारहीन होता है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण शुन्य है। लेकिन उस यात्री का शरीर और द्रव्यमान दोनो बरकरार है। वैज्ञानिको के अनुसार ब्रम्हांड के कुल द्रव्यमान का ९०-९९ प्रतिशत द्रव्यमान अनुपस्थित है। “अनुपस्थित द्रव्यमान” एक तरह से गलत शब्द है क्योंकि तथ्य यह है कि इस पदार्थ द्वारा उत्सर्जित प्रकाश अनुपस्थित है, जिससे वह दिखायी नही दे रहा है। वैज्ञानिक कह सकते है कि श्याम पदार्थ उपस्थित है लेकिन वह उसे देख नही सकते है। वैज्ञानिको के अनुसार यह शर्मनाक है कि हम ब्रम्हांड के ९० प्रतिशत भाग को खोज नही पाये है।

आकाशगंगा के द्रव्यमान की गणना विधी

ब्रह्मांड के द्रव्यमान की गणना कैसे की जाये ? ब्रह्माण्ड की सीमाये अज्ञात है, इस कारण से ब्रह्मांड का वास्तविक द्रव्यमान भी अज्ञात होगा। लेकिन वैज्ञानिक ब्रह्मांड के अनुपस्थित द्रव्यमान की गणना प्रतिशत मे करते है जो वास्तविक संख्या नही है। अधिकतर दृश्य पदार्थ आकाशगंगाओं के रूप मे गुच्छो मे है, इसलिए सभी आकाशगंगाओं का कुल द्रव्यमान ब्रह्मांड के कुल द्रव्यमान की गणना के लिए पर्याप्त होगा। लेकिन असिमित संख्या मे आकाशगंगाओं के द्रव्यमान का योग करना असंभव है, इसलिए वैज्ञानिक ब्रह्मांड मे अनुपस्थित द्रव्यमान का अनुमान आकाशगंगा तथा आकाशगंगा समूह के अनुपस्थित द्रव्यमान की गणना से लगाते है।

वैज्ञानिक एक से ज्यादा विधियों से आकाशगंगाओं के द्रव्यमान की गणना करते है जिससे उन्हे उस द्रव्यमान की मात्रा पता चल जाती है जो देखा नही जा सकता है।

 डापलर प्रभाव

 यह किसी तरंग (Wave) की तरंगदैधर्य (wavelength) और आवृत्ती (frequency) मे आया वह परिवर्तन है जिसे उस तरंग के श्रोत के पास आते या दूर जाते हुये निरीक्षक द्वारा महसूस किया जाता है। यह प्रभाव आप किसी आप अपने निकट पहुंचते वाहन की ध्वनि और दूर जाते वाहन की ध्वनि मे आ रहे परिवर्तनो से महसूस कर सकते है। इसे वैज्ञानिक रूप से देंखे तो होता यह है कि आप से दूर जाते वाहन की ध्वनी तरंगो (Sound waves) का तरंगदैधर्य (wavelength) बढ जाती है, और पास आते वाहन की ध्वनि तरंगो (Sound waves) का तरंगदैधर्य कम हो जाती है।

दूसरे शब्दो मे जब तरंगदैधर्य (wavelength) बढ जाती है तब आवृत्ती कम हो जाती है और जब तरंगदैधर्य (wavelength) कम हो जाती है आवृत्ती बढ जाती है। डाप्लर प्रभाव प्रकाश तरंगो पर भी कार्य करता है। जब प्रकाश श्रोत पास आता है तब प्रकाश ज्यादा नीला होता है जिसे नीला विचलन (Blue shift) कहते है। जब प्रकाश श्रोत दूर ज्यादा है तब प्रकाश ज्यादा लाल हो जाती है जिसे लाल विचलन (red shift) कहते है। विचलन की मात्रा श्रोत की गति पर निर्भर करती है, जितनी ज्यादा गति उतना ज्यादा विचलन। डाप्लर प्रभाव से आया विचलन नंगी आंखो से देखा नही जा सकता है, वैज्ञानिक इसे मापने के लिए स्पेक्ट्रोस्कोप उपकरण का प्रयोग करते है।

डाप्लर प्रभाव से तारो और आकाशगंगाओं की गति की गणना की जा सकती है।

विधि 1. घूर्णन गति: आकाशगंगा का घूर्णन (गति और आकाशगंगा से केन्द्र की दूरी का आलेख)

 केन् डाप्लर प्रभाव के प्रयोग से वैज्ञानिक आकाशगंगाओ की गति के बारे मे काफी कुछ जानते है। यह ज्ञात है कि आकाशगंगाएँ घूर्णन करती है क्योंकि आकाशगंगा के एक छोर से नीले विचलन वाला प्रकाश तथा दूसरे छोर से लाल विचलन वाला प्रकाश प्राप्त होता है। इसका अर्थ होता है कि एक छोर पृथ्वी की ओर आ रहा है, जबकि दूसरा छोर पृथ्वी से दूर जा रहा है। इस विचलन की मात्रा से घूर्णन गति की गणना की जा सकती है। घूर्णन गति के ज्ञात होने के बाद उस आकाशगंगा के द्रव्यमान की गणना की जा सकती है।

जब वैज्ञानिको ने आकाशगंगा की घूर्णन गति पर ध्यान दिया उन्हे एक विचित्र तथ्य ज्ञात हुआ। आकाशगंगा मे एक सामान्य अकेला तारे का व्यवहार हमारे सौर मंडल के किसी ग्रह के जैसे होना चाहिये अर्थात तारे की गति आकाशगंगा के केन्द्र से दूरी अनुपात मे कम होना चाहिये। जितनी ज्यादा दूरी उतनी कम गति।

 लेकिन डाप्लर प्रभाव के निरिक्षण के अनुसार कुछ आकाशगंगाओं मे तारो की गति केन्द्र से दूर होने के बावजूद भी कम नही होती है। इसके विपरीत तारो की गति इतनी ज्यादा होती है कि आकाशगंगा को बिखर जाना चाहिये क्योंकि उन आकाशगंगाओ मे मापा गया पदार्थ का द्रव्यमान आकाशगंगा को सम्हाले रखने लायक गुरुत्वाकर्षण उत्पन्न करने मे सक्षम नही है।

इन उच्च घूर्णन गति वाली आकाशगंगाये यह दर्शाती है कि इन आकाशगंगाओ मे गणना किये गये द्रव्यमान से ज्यादा द्रव्यमान होना चाहिये। वैज्ञानिको के अनुसार यदि ये आकाशगंगा किसी अदृश्त पदार्थ के मण्डल से घिरी हुयी हो तभी यह आकाशगंगा इस उच्च घूर्णन गति पर स्थायी रह सकती है।

विधि 2. उत्सर्जित प्रकाश मात्रा का निरिक्षण:
कोमा आकाशगंगा समूह

कोमा आकाशगंगा समूह आकाशगंगाओ (या उनके समूहो) के द्रव्यमान की गणना के लिए वैज्ञानिक उनके द्वारा उत्सर्जित प्रकाश का निरिक्षण करते है। पृथ्वी तक पहुंचने वाले प्रकाश की मात्रा से वैज्ञानिक उसके तारो की संख्या का अनुमान लगाते है। तारो की संख्या के ज्ञात होने के पश्चात उस आकाशगंगा के द्रव्यमान की गणना कर सकते है।

फ्रिट्झ झ्वीकी ने इन दोनो विधियो से कोमा आकाशगंगा समूह के द्रव्यमान की गणना की थी। जब उन्होने दोनो आंकड़ो की तुलना की तब उन्हे अनुपस्थित द्रव्यमान समस्या का पता चला था। इन आंकड़ो से पता चला कि हम ब्रह्मांड के १० प्रतिशत भाग को ही देख पा रहे है बाकि ९०% भाग अदृश्य है।

#कृष्णप्रिया

Comments